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शनिवार, 25 मई 2013

८२. बीज और चट्टान



एक छोटा सा बीज था मैं,
अब पौधा बन गया हूँ .

बस थोड़ी सी मिट्टी मिली थी चट्टान पर,
उसी में प्रस्फुटित हुआ
और वहीँ जमा लीं अपनी जड़ें .

यह तो बस शुरुआत है,
धीरे-धीरे वह दिन भी आएगा,
जब मेरी जड़ें इतनी मजबूत होंगीं
कि यह चट्टान फट जाएगी .

कभी मैं और चट्टान
दोनों कठोर थे,
मैंने छोड़ दी अपनी कठोरता,
आने दिया कोमलता को बाहर,
पर चट्टान चूर रही मद में,
छोड़ नहीं पाई कठोरता,
खोज नहीं पाई कोमलता
अपनी सख्त सतह के नीचे .

जब मेरी जड़ें तोड़ेंगी चट्टान को,
तो यह बीज की चट्टान पर नहीं
कोमलता की कठोरता पर विजय होगी .

शुक्रवार, 17 मई 2013

८१. बूँद-बूँद


अभी-अभी शुरू हुआ है नल,
बूँद-बूँद आ रहा है पानी,
धीरज रखो, प्यास ज़रूर बुझेगी,
नहा सकेगा पूरा परिवार,
दाल-चावल पकेंगे, आटा गुन्धेगा,
सफाई हो सकेगी आँगन की,
भरी होंगी बाल्टियाँ गुसलखाने में.

बूँद-बूँद आ रहा है पानी,
परेशान क्यों हो, आने दो,
क्या सुना नहीं तुमने 
कि बूँद-बूँद से घड़ा भरता है?
तुम्हारा भी भर जाएगा,
बस यह मत पूछना कि 
इस तरह घड़ा भरने में 
समय कितना लगता है.

शुक्रवार, 10 मई 2013

८०. मौन

बहुत साल हुए बोझ ढोते,
चलो, अब इसे उतार फेंकें.

भूल जाएँ वह कहासुनी,वे बातें,

जिन पर वक्त की पर्त जमी है,
जो मुश्किल से याद आती हैं,
बड़ी कोशिशों से ताज़ा रह पाती हैं.

तोड़  दें हमारे बीच का मौन,

गिरा दें वह दीवार
जिसका नींव से संपर्क टूट रहा है.

न तुम्हें माफ करने की ज़रूरत है मुझे,

न मुझे माफ करने की ज़रूरत है तुम्हें,
न कोई तर्क चाहिए, न विश्लेषण
कि गलती तुम्हारी थी या मेरी.

कुछ मैं तुमसे कहूँ,कुछ तुम मुझसे,

फिर से डालें आदत संवाद की,
पुराने दिनों में लौटने के लिए 
मौन की आदत बदलना ज़रुरी है.

शनिवार, 4 मई 2013

७९. शब्द

आजकल बार-बार करना पड़ता है 
कुछ शब्दों का प्रयोग,
सोचना नहीं पड़ता उन्हें,
याद हो गए हैं वे,
स्थिति बनते ही 
खुद-ब-खुद चले आते हैं.

अपने-आप बैठ जाते हैं 
हर किसी की ज़ुबान पर,
बिना किसी प्रयास के 
कागज़ पर उतर आते हैं.

आजकल बार-बार प्रयोग में आते हैं 
हत्या, बलात्कार,लूट,
अपमान,बेईमान जैसे शब्द,
दूसरों को मौका ही नहीं देते.

आजकल भूलने लगा हूँ मैं 
बहुत सारे शब्द 
जो बचपन में सीखे थे,
आजकल मैं शब्दकोष 
साथ लेकर चलता हूँ.